ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया आवारगी
इस दस्त में एक शहर था वो क्या हुआ आवारगी
इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मेरे गम का शबब
सहारा की भीगी रेत पर मैंने लिखा आवारगी
इक मै की सदियों से तेरे हमराज भी हमराह भी
इक तू की मेरे नाम से ना आशना आवारगी
कल रात तनहा चाँद को देखा था मैंने ख्वाब में
मोहसिन मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
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